मूल प्रकाशन : आखर, भोजपुरी ई-पत्रिका, जून 2016
“प्यास के अर्थशास्त्र” – इहे शीर्षक रहे पी. साईंनाथ जी के वक्तव्य के। पी. साईंनाथ जी जानल मानल ग्रामीण पत्रकार हईं। सूखा पर एगो बेहतरीन आ ज्ञानवर्धक किताब, ‘एवरीबॉडी लव्स इ गुड ड्राउट’, इंहा के लिखले बानी। इ किताब हिंदी में ‘तीसरी फ़सल’ के नाम से आइल बा।
पिछला महीना के बात ह, स्वराज अभियान आ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के संयुक्त प्रयास से दिल्ली में ‘सूखा पर राष्ट्रीय विमर्श’ भईल। सूखा राहत खातिर स्वराज अभियान द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एगो जनहित याचिका दायर कईल गईल रहे। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसला आईल। ‘जिये के अधिकार’ लोग के संवैधानिक अधिकार ह आ सरकार के जिम्मेवारी बा इ सुनिश्चित कइल। सूखा से तत्काल राहत खातिर मनरेगा, खाद्य सुरक्षा आ मिड दे मील से जुडल कए गो आदेश अदालत के फ़ैसला में आईल। ‘सूखा पर राष्ट्रीय विमर्श’ के उद्देश्य रहे आगे के दिशा आ कार्यक्रम तय कइल।
एह विमर्श में खाद्य आ कृषि विश्लेषक देविंदर शर्मा, सीएसई के सुनीता नारायण, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. सुनीलम, ग्रामीण पत्रकार पी. साईंनाथ, स्वराज अभियान के जय किसान आन्दोलन के सह-संयोजक अभीक साहा, जय किसान आन्दोलन के संयोजक योगेन्द्र यादव आ आउर कए गो पत्रकार, बुद्धिजीवी आ अलग-अलग राज्य से आईल कार्यकर्त्ता लोग मौजूद रहे। बहुत तरह के बात भइल, सुझाव आईल। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला के प्रति लोग के जागरूक कईल जाव आ इ प्रभावी ढंग से जमीन पर उतरे एह उद्देश्य से सूखा के दू गो सबसे बड़ केंद्र – मराठवाड़ा आ बुंदेलखंड – में 10 दिन के ‘जल-हल पदयात्रा’ के रूपरेखा तैयार भइल।
खैर, इ त कार्यक्रम के भूमिका भइल। हम बात करे के चाहतानी पी. साईंनाथ जी के वक्तव्य पर जवना के जिक्र सबसे ऊपर कईले बानी। पानी के संकट से जुड़ल एगो बड़ा अहम् सवाल पी. साईंनाथ जी उठवनी। उहाँ के सवाल बा कि हमनी के तय करे के पड़ी कि “पानी बुनियादी मानवीय हक़ ह कि व्यापार के कवनो चीज?” इ एगो बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न बा!
पानी के संकट राष्ट्रीय खबर बनल जब महाराष्ट्र में आईपीएल ना करावे के केस बाम्बे हाई कोर्ट में भइल। एक तरफ पानी के हाहाकार बा त दूसरा तरफ बहुत ज्यादा पानी स्टेडियम के रखरखाव में जाला। चूँकि आईपीएल जुड़ल रहे त इ खबर चलल। एह वजह से सूखा आ पानी के संकट कुछ दिन ला देश के सामने आइल। अब साईंनाथ जी के सवाल पर विचार करीं। पानी अगर व्यापार के चीज ह त जेकरा पास पैसा होई ओकरा मिली।
एह के दोसरा तरीका से समझल जाव। महाराष्ट्र के एगो जिला ह लातूर। कुछ दिन बड़ा चर्चा में रहल। पानी के संकट एतना बढ़ गईल कि ट्रेन से टैंकर भेजे के पड़ल। ‘जल-हल पदयात्रा’ के शुरुआत उहें से भईल रहे। उहाँ से खबर इ बा कि अगर रऊआ पानी मांगेम त पानी मिल जाइ। लेकिन इ पानी मुफ्त नइखे। कई गुना दाम पर खरीदे के पड़ी। पानी आ प्यास के धंधा खुल गईल बा। पानी, बोरवेल, टैंकर, बोतल वाला पानी, इ सबके बहुत बड़ा नेटवर्क बा। पानी के आगे-पीछे बहुत बड़ा धंधा कई साल से खुल गईल बा। सरकारी पानी के टैंकर गाँव में 15-20 दिन में एक हाली आवेला, उहो 1-2 घंटा ला। अब जे खाना ला रोज जोहत होखे ऊ पानी ला पैसा कहाँ से लियाई! एकरे के पी. साईंनाथ जी कहतानी ‘प्यास के अर्थशास्त्र’।
मराठवाड़ा के छोड़ीं, अबकी चैती छठ के फोटो छपरा के हमरा गाँव से आइल रहे। बड़का पोखरा में तनिको पानी ना रहे। मोटर से पानी डाल के छठ भईल। घर में 20 लीटर बोतल वाला पिए के पानी आवे लागल बा। पानी के प्लांट सब खुल गईल बारी स। लोग आरओ लगवावे लागल बा। बहुत पुरान बात ना ह कि कुआँ से पिये के पानी हमनी के मिल जात रहे। फेर हैंडपम्प आ गईल। अब मोटर आ ‘वाटर प्यूरीफायर’ लगावे के पड़ता। कई जगहा से पानी में आर्सेनिक के शिकायत बा। अब सोचीं कि जेकरा पास पैसा बा ऊ त सब व्यवस्था क लेता लेकिन रोज कमाए आ खाए वाला खाना के व्यवस्था करो कि पानी के!
त सवाल इ बा कि मानव सभ्यता के एतना तरक्की के बाद भी हमनी के अब तक खाना आ पानी के व्यवस्था ठीक से ना कर सकल बानी। वैसे त विकास के अंध माहौल में पर्यावरण के बात कईल भी गुनाह बा लेकिन तनी सोचीं, हवा में प्रदूषण से सांस लेहल मुश्किल बा, प्राकृतिक पानी पिये लाईक नइखे रह गईल, अनाज-साग-सब्जी सब केमिकल वाला हो गईल बा। प्रश्नचिह्न के साथ ही हम आपन बात खतम करतानी। हमनी के विकास करतानी कि गर्त में जात बानी?
[फोटो साभार : जयति साहा, स्वराज अभियान]